एक वह नेता थे

जनसभा में भाषण देने के बाद हेमवती नंदन बहुगुणा खुली जीप में खड़े होकर नेहरू स्टाइल में हाथ हिलाते शहर से होते हुए डाक बंगले पहुंचे। डाक बंगला पुराने टिहरी शहर की कचहरी के पास था। नीम अंधेरे में करीब दो सौ फरियादियों से मिलते हुए वह सभी की अर्जियां लेने लगे। मैं सबसे अंत में खड़ा था और मैंने उनके हाथ में एक पन्ना थमा दिया, जिसमें मेरा परिचय तथा उनसे दो मिनट अलग से मिलने की गुहार थी। करीब दस मिनट बाद एक एसडीएम मेरा नाम पुकारता आया- ‘सरकार’ ने भीतर बुलाया था। इसका अर्थ यह हुआ कि बहुगुणाजी ने जनता से मिलने के बाद सारी अर्जियां पढ़ी थीं। दिन भर की भागदौड़ से श्लथ होकर वह बिस्तर पर बैठे थे। वह मेरी- अस्कोट-आराकोट पदयात्रा की डायरी पलटने, बल्कि पढ़ने लगे। अचानक उन्होंने हांक लगाई- शुक्ला! दरवाजे पर खड़ा कलेक्टर जी सरकार कहता हुआ दोनों हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।

यह नौकरशाहों पर उस जमाने के शासकों का रुतबा था, क्योंकि वे पैसे खाकर पोस्टिंग नहीं करते थे। खैर.. बहुगुणाजी ने कलेक्टर से गुस्से में पूछा- यह नैट्वाड कहां है? कैसे हुआ वह कत्ल? वह मेरे जिले में नहीं, उत्तरकाशी में है सरकार, कहकर कलेक्टर ने राहत की सांस ली। उससे (उत्तरकाशी के डीएम से) कहो कि मुझसे बात करे, कहकर बहुगुणा फिर मेरी ओर मुखातिब हुए। दरअसल मेरी यात्रा डायरी में एक जगह नैट्वाड में हुए एक ब्लाइंड मर्डर केस का जिक्र था, जिसे पढ़कर बहुगुणा तुरंत हरकत में आ गए थे।

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